स्वामी विवेकानन्द के जीवन परिचय और उपदेश


परिचय
स्वामी विवेकानंद एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति को अमेरिका, यूरोप और पुरे विश्व में पहुंचाये। वे साहित्य, दर्शन और इतिहास के ज्ञानी थे। स्वामी विवेकानंद ने राम कृष्ण मिशन का स्थापना किया था जो आज भी अपना काम कर रहा है। स्वामी विवेकानंद के जीवनी बताता है कि उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जी जो काम कर गये वे आने वाली सदियो तक हम मार्गदर्शन करते रहेंगे। उनके जन्मदिन को हम युवा दिवस मनाते हैं।

बचपन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था।वे नौ भाई बहन में से थे। उनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनकेे पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो पश्चिमी सभ्यता को मानते थे। वे कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र दत्त के मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था। जो धार्मिक विचार वाली कर्त्तव्यपरायण महिला थी। उनकेे घर नियमापूर्वक रोज पुजा-पाठ होता था । परिवार के धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में धर्म और अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गया। बचपन से ही नरेन्द्र तेज बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे।

शिक्षा
नरेंद्र दत्त जब आठ साल के थे तब उनका दाखिला ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में किया गया। 1879 में वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली। स्वामी विवेकानंद को वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराणों और हिन्दू शास्त्रों में बहुत रूचि थी। 1880 मे नरेंद्र दत्त ईसाई से हिन्दू धर्म में राम कृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर केशव चंद्र सेन के नव विधान में शामिल हुए

शिकांगो धर्म महा सम्मेलन
स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका स्थित शिकांगो में धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था । मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों आप जिस प्रेम और स्नेह से हमलोगो स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करता हूं। और मेरा हृदय हर्ष से पूर्ण हो राहा है। इतना कहने पर स्वामी विवेकानंद के लिए लोगों ने खुब तालियां बजाने लगे । इसकेे बाद स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका सहित पूरे यूरोप में सनातन धर्म का प्रचार किया।

मृत्यु
स्वामी विवेकानंद जी डायबिटीज और अस्थामा रोग से पीड़ित थे। 4 जुलाई 1902 को उन्तालीस वर्ष के उम्र में वह समाधि में लीन हो गए। उस दिन भी उन्होंने रोज की भांति सुबह शुक्ल यजुर्वेद का पाठ किया ‌। और अपने शिष्यों से कहा "एक और विवेकानंद चाहिए जो यह जान सके यह विवेकानंद ने किया क्या है" । इसकेे बाद वह ध्यान में लिन हुए और वैसा ही समाधि में लीन हो गए।

स्वामी विवेकानंद जी के उपदेश
१. उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता
२. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ
३. पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
४. एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।

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