Chandrasekhar Azad Biography In Hindi | चन्द्रशेखर आजाद की जीवनी
नाम - चन्द्रशेखर आजाद
जन्म - 13 जुलाई 1906
गांव - भाबरा गांव ( वर्तमान नाम चन्द्रशेखर आजादनगर )
पिता - पंडित सीताराम तिवारी
माता - जगरानी देवी
मृत्यु - 27 फरवरी 1931 ( अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश )
शहीद चन्द्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी। उन्होंने मरते वक्त कहां था " मैं आजाद था आजाद हु और आजाद रहुंगा " उनकी वीरता की गाथा देशवासियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है।
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 13 जुलाई 1906 में भाबरा गांव में हुआ था। अब इस गांव का नाम चन्द्रशेखर आजादनगर है। आजाद के पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद के प्रांरम्भिक जीवन उनके गांव भाबरा में बिता । भाबरा गांव आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र था। बचपन में आजाद भील बच्चों के साथ खुब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार आजाद ने बचपन में निशानेबाजी सिख लिया था
1919 में जालियांवाला बाग नरसंहार के बाद देशभर के युवाओं के अंदर ज्वालामुखी उत्पन होता गया था। उस समय चन्द्रशेखर आजाद पढ़ाई कर रहे थे। गांधी जी ने 1921 असहयोग आंदोलन शुरू किया तो चन्द्रशेखर और उनके साथी छात्रों ने भी आंदोलन के लिए सड़क पर उतर आए। अपने विद्यालय के छात्रों के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 14 बेतों की सज़ा मिली।
असहयोग आन्दोलन के दौरान जब 1922 में चौरी चौरा के घटना के बाद गांधी जी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया तो चन्द्रशेखर आजाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। चन्द्रशेखर आजाद ने मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था। यह संगठन, गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि अंग्रेजों से लड़ने के लिए, धन जुटाने की व्यवस्था हो सके।
हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के 10 सदस्यों ने 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर के काकोरी रेलवे स्टेशन पर रेल से सरकारी खजाना लुट लिया। इस घटना को इतिहास में काकोरी काण्ड के नाम से जाना जाता है। इस घटना के बाद अंग्रेज, चन्द्रशेखर आजाद को पकड़ न सके लेकिन दल के शिर्ष चार सदस्यों को फांसी दे दिया । और दल के 16 लोगों को कड़ी सजा सुनाया गया।
आजाद एक देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखुबी सिख लिया। इसका उपयोग वह दल के लिए धन जुटाने करते थे। 27 फरवरी 1931 को चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में मिटिंग कर रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद के पास सिर्फ एक गोलि बची जिससे वह खुद को मार ली इस तरह उनको को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद 15 अगस्त सन् 1947 को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे उसे जीते जी देख न सके।
चन्द्रशेखर आजाद के पुण्य तिथि 27 फरवरी 1931 को हम बलिदान दिवस मनाते हैं।
उनको श्रद्धांजलि देते हुए कुछ महान व्यक्तित्व के कथन निम्न हैं-
* चंद्रशेखर की मृत्यु से मैं आहत हूं। ऐसे व्यक्ति युग में एक बार ही जन्म लेते हैं। फिर भी हमें अहिंसक रूप से ही विरोध करना चाहिए।
- महात्मा गांधी
* चंद्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आंदोलन का नए रूप में शंखनाद होगा। आजाद की शहादत को हिन्दोस्तान हमेशा याद रखेगा।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू
- पंडित जवाहरलाल नेहरू
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