जितिया व्रत 2020 : शुभ मुहूर्त, पुजा विधी, कथा
इस साल जितिया पर्व 10 सितंबर 2020 को है। जितिया पर्व को जिवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह पर्व मुख्य रूप बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता हैं। इसके अलावा नेपाल के मिथिला और थरुहट में भी मनाया जाता है। जितिया व्रत को माताएं संतान कि वृद्धि और लंबी उम्र के लिए निर्जल उपवास रखती हैं। इस व्रत को सनातन धर्म में खास महत्व है।
जितिया पर्व कब आता है।
जितिया पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। यह विक्रम संवत के अश्विन मास में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चन्द्र दिवस तक मनाया जाता हैं। ग्रेगोरिय कैलेंडर के अनुसार जिउतिया पर्व सितंबर महीने में आता है।
2020 में जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त
इस साल जितिया अश्विन कृष्ण-पक्ष अष्टमी 9 सितंबर को रात 9 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगा और 10 सितंबर की रात 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। 9 सितंबर रात 9 बजकर 46 मिनट से पहले नहाय-खाय होगा। 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्रोदय का अभाव है, इसी दिन जिउतिया पर्व मनाया जाएगा। जितिया पर्व के पारन के शुभ मुहूर्त 11 सितंबर के सुर्योदय से लेकर 12 बजे तक रहेगा।
जितिया पर्व के पुजा विधी
जितिया पर्व के पहला दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले खाना खाया जाता है और बाकी दिन उपवास रखा जाता है। खाने में झोर चावल, नोनि का साग और मणुआ की रोटी ली जाती है।
जितिया पर्व के दुसरा दिन को खर-जितिया कहा जाता है इस दिन निर्जल उपवास महिलाएं रखती है। और जिमूतवाहन राजकुमार कि प्रतिमा बनाई जाती है। इसे पूजा स्थल परा विराजित करने के बाद धुप, दीप, चावल, पुष्प, आदि पूजन सामग्री से जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। पूजा के अंत में महिलाएं हाथ जोड़कर अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए जीमूतवाहन से प्रार्थना करती हैं।
जितिया के तीसरा और अंतिम दिन को पारन किया जाता है। इसी दिन निर्जल उपवास को प्रात:काल भोजन कर के उपवास तोड़ा जाता है।
जितिया व्रत कथा
एक समय कि बात है नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में चील और लोमड़ी घुम रहे थे। तो उन दोनों ने देखा कि महिलाएं पुजा और उपवास कर रही है तो उन दोनों ने भी यह पुजा और उपवास करने को ठानी लेकिन लोमड़ी भुख से बेहोश हो गई और चुपके से भोजन कर लिया। दुसरी ओर चील सच्ची मन से यह व्रत किया। परिणामस्वरूप लोमड़ी के जो बच्चे जन्म हुए वे जल्दी मर गया। और जो चील के बच्चे हुए वे दिर्घायु तक जीये।
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