भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी

डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति और महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे कमाल के स्काॅलर, तेज तराज नेता और जबरजस्त वकील थे। उन्होंने भारत के संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 1950 से 1962 तक देश के राष्ट्रपति रहे। इसके अलावा 1946 एवं 1947 मेें डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व भी निभाया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद को सम्मान से उन्हें 'राजेन्द्र बाबू' कहकर पुकारा जाता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद को सन् 1962 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राजेन्द्र बाबू हमेशा सादगी, सेवा, त्याग, देशभक्ति और स्वतंत्रता आंदोलन मे आगे रहते थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद अत्यंत सरल और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे, वे सभी वर्ग के लोगो से अच्छा व्यव्हार करते थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म और परिवार


 राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार में सीवान जिले के जीरादेई गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनके दादा जीरादेई के पास हथुआ रियासत के दीवानी थी। पच्चीस-तीस सालों तक वे उस रियासत के दीवान रहे। उन्होंने स्वयं भी कुछ जमीन खरीद ली थी। जिसे डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय इस जमींदारी की देखभाल करते थे। राजेन्द्र बाबू के चाचा जगदेव सहाय  घर पर ही रहकर जमींदारी का काम देखते थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय वे संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। इसके अलावा इनको ढेर सारी भाषाएं मालूम था। राजेन्द्र बाबू के माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। वे धार्मिक महिला थी, वे हमेशा रामायण, महाभारत और धार्मिक ग्रंथ पाठ करती और अपने बच्चों को सुनाती थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद पांच भाई बहन थे, जिसमें वे सबसे छोटे थे, जिसे पूरे परिवार में सबके प्यारे थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा


डॉ राजेंद्र प्रसाद एक बहुत तेज-तराज विद्यार्थी थे। वे पांच साल उम्र में एक मौलवी से फारसी कि पढ़ाई करने लगे। इसके बाद प्रारम्भिक शिक्षा छपरा के जिला स्कुल से किया। डॉ राजेंद्र प्रसाद की शादी बारह वर्ष के उम्र में राजवंशी देवी से हो गया था। लेकिन शादी उनके पढ़ाई में रुकावट नहीं बना। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने भाई महेंद्र प्रसाद के साथ टी० के० घोष अकादमी पटना में दाखिला लिया। जहां उन्हें हर महीने 30 रूपए की स्कॉलरशिप मिलती थी। सन् 1902 में डाॅ राजेंद्र प्रसाद ने कलकत्ता के प्रसिद्ध काॅलेज प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री हासिल किया। वे प्रवेश परीक्षा में टॉप स्थान प्राप्त किये थे। उनके गांव से पहली बार कोई युवक ने कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता मिली थी, जो निश्चित ही डॉ राजेंद्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी। सन 1907 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में एम् ए किया। सन 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेंडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। इसके बाद पटना आकर डॉ राजेंद्र प्रसाद वकालत करने लगे, जिससे इन्हें बहुत धन ओर नाम कमाये।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान


भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में राजेंद्र बाबू  एक वकील के रुप में पहचाने गये। सन् 1914 में बिहार और बंगाल में आई बाढ़ में राजेंद्र बाबू बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया और खुब लोगों की मदद किये। डॉ राजेंद्र प्रसाद गांधी जी से काफी प्रभावित थे। सन् 1919 में  गांधी जी ने आह्वान किया स्वदेशी अपनाओ और विदेशी भगाव तो राजेंद्र बाबू ने अपने बेटे मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में एडमिशन करवाया था। सन् 1917 में चम्पारन आंदोलन के दौरान राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के सबसे वफादार साथी बन गए थे। गांधी जी के साथ आने के बाद उन्होंने अपने पुराने और रूढिवादी विचारधारा को छोड़ एक नई ऊर्जा के साथ गांधी जी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। सन् 1934 में राजेंद्र बाबू को भारतीय नेशनल काँग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1939 में सुभाष चन्द्र बोस के कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद राजेंद्र बाबू फिर एक बार कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गए। सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ जिसमें देश के लगभग सारे नेताओं को जेल में डाल दिया गया था जिसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद भी थे। 

राष्ट्रपति

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होने के बाद भारत का संविधान डाॅ भीमराव अम्बेडकर के अध्यक्षता बन रहा था जिसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ तो डाॅ राजेन्द्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद राजेन्द्र बाबू 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश ले लेने के बाद ही उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये बिहार में पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। जहां 28 फ़रवरी 1963 को अपना अंतिम सांस ली। हम सभी को इन महापुरुष पर गर्व है और ये सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे।

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