रामधारी सिंह दिनकर जी जन्म, परिवार, शादी, साहित्य, अवॉर्ड, काव्य रचना, कैरियर और मृत्यु


रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के आधुनिक युग के राष्ट्रकवि, एक प्रमुख लेखक और निबंधकार थे। वे पंद्रह वर्ष के उम्र से कविताएं लिखने लगे थे। उनकी कविता में वीर रस और काव्य में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता साफ-साफ दिखाई देती है। उनकी पहली कविता जबलपुर के पत्रिका 'छात्र सहोदर' सन् 1924-25 में छपी थी। और पहली काव्य रचना सन् 1929 में छपी जिसका नाम 'प्रण भंग' था। रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के अलावा मैथिली भाषा में अपनी रचना की है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 'कुरुक्षेत्र' और 'उर्वशी' नामक रचना में ओज, विद्रोह, क्रान्ति और आक्रोश की पुकार का साफ झलक मिलता है। और दूसरी तरफ अपनी रचना में कोमल शृंगारिक भावनाओं प्रकट करते है।
राष्ट्रकवि दिनकर को काव्य रचना देखकर उन्हें 'काल के चरण' और 'युग चरण' की संज्ञा दी गई है। राष्ट्रकवि दिनकर राजनीति में भी सक्रिय रहे। उन्होंने 3 अप्रैल 1952 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। और वे लगातार तीन बार 26 जनवरी 1964 तक राज्यसभा सांसद रहे थे।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

राष्ट्रकवि दिनकर जी का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में  24 सितंबर 1908 को मध्यवर्गीय भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पालन-पोषण और बचपन वहीं सिमरिया ग्राम में हुआ।
रामधारी सिंह दिनकर के बचपन के समय उनके गांव में घर-घर रामचरितमानस होता था। उनके पिता जी को रामचरितमानस कंठस्थ याद था। उस समय वहां के लोग अनपढ़ और भुत-प्रेत पर विश्वास करते थे। दिनकर जी के परिवार और समाज साधारण किसान और खेतिहर मजदूर था। दिनकर जी ऐसे परिवेश में पले बढ़े थे।

दिनकर जी जब दो वर्ष के थे तो उनके पिता बाबू रवि सिंह का स्वर्गवास हो गया था। दिनकर जी के दो भाईयों केदारनाथ सिंह और रामसेवक सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ कर किसानी करने लगे । दिनकर जी के माता का नाम मनरुप देवी था। जो एक गृहिणी थी। दिनकर जी के दादा का नाम शंकर राय था। और इनके खानदान में एक कवि था जिसका नाम भैरव राय था। दिनकर जी जब तेरह वर्ष के थे तो उनका शादी  श्यामावती देवी से हो गया।

शिक्षा

दिनकर जी के पिता का स्वर्गवास हो जाने के बाद दिनकर के भाईयों ने उनकी पढ़ाई के जिम्मेदार अपने उपर ले लिया   था। दिनकर जी की प्राथमिक शिक्षा उनके गांव के स्कूल में किया। 15 वर्ष के उम्र में उन्होंने माध्यमिक शिक्षा पास कर के 'मोकामाघाट हाई स्कूल’ में दाखिला लिया, और सन् 1928 में रामधारी सिंह दिनकर ने मैट्रिक पास किया। और उस प्रांत में हिंदी विषय में सबसे ज्यादा नम्बर इन्हें मिला था।
दिनकर जी आगे के पढ़ाई सन् 1932 तक पटना काॅलेज में किया और इतिहास में बी.ए. ऑनर्स कि डिग्री हासिल किया।

कैरियर

दिनकर जी के काॅलेज जीवन के समय स्वाधीनता आंदोलन का दौर था जहां राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता, समाजवाद, धर्म और संस्कृति की बात और सभा होती थी। दिनकर जी सभा में भाषण देते थे। और कविताएं लिखते थे। दिनकर जी ने सन् 1930 से 1935 तक उन्होंने देशभक्ति से भरपूर क्रांतिकारी कविताएं लिखी।
दिनकर जी ने बी.ए. ऑनर्स करने के बाद बिहार सरकार में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग में उपनिदेशक पद पर सन् 1934 से 1947  तक कार्य किए।

सन् 1947 में भारत के आजादी मिलने के बाद दिनकर जी को बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष के जिम्मेदारी सौंपी गई।

सन् 1952 में भारत देश में पहली चुनाव हुआ और संसद बना, जिसमें दिनकर जी को राज्यसभा सांसद चुना गया। वे राज्यसभा सांसद 3 अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक बारह वर्षों तक रहे।

इसके बाद दिनकर जी ने  बिहार आकर सन् 1964 से 65 भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति रहे। फिर भारत सरकार ने उन्हें दिल्ली बुलाकर उन्हें भारत सरकार में हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया, जहां उन्होंने  सन् 1965 से 1971 तक रहे।

दिनकर जी की काव्य सफर

सन् 1933 में बिहार के भागलपुर में आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन में दिनकर जी ने अपनी कविता 'हिमालय के प्रति' पढ़ी। जिसके बाद पुरे हिंदी प्रदेश में उनका नाम फैल गया। इसके बाद उनके उपर और साहित्य साधना और राष्ट्रवादी विचारधारा गढ़ा हो गया।

सन् 1935 में रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित काव्य संग्रह 'रेणूका' प्रकाशित हुआ। जो काफी पाॅपुलर हुआ, इसके बाद उन्होंने सन् 1938 में 'धुंधार' काव्य संग्रह निकाली। अब रामधारी सिंह दिनकर का प्रचंड समस्त हिन्दी प्रदेश में फैल चुका था।

सन् 1946 में दिनकर जी ने प्रबंध काव्य 'कुरुक्षेत्र' निकाला , इस प्रबंध काव्य में हिंसा-अहिंसा, युद्ध और शांति आदी समस्याओं पर दिनकर जी ने गहन विचार प्रकट किए हैं। इस प्रबंध काव्य को बहुत से भाषा में अनुवाद किया गया है।

सन् 1952 में दिनकर जी ने महाभारत के योद्धा कर्ण के जीवन पर आधारित खंडकाव्य 'रश्मिरथी' निकाला। जो काफी लोकप्रिय रहा। यह खंडकाव्य दिनकर जी को और ऊंचाइयों पर ले गया।
दिनकर जी ने कुल 33 काव्यकृति निकाला जिसमें 'कुरुक्षेत्र' और 'उर्वशी' महाकाव्य को उनका सबसे लोकप्रिय महाकाव्य माना गया। उन्होंने 60 पुस्तकें लिखी है जिसमें 27 गद्यखंड है।

काव्य कृतियां

बारदोली-विजय संदेश (1928),
प्रणभंग (1929)
रेणुका (1935)
हुंकार (1938)
रसवन्ती (1939)
द्वंद्वगीत (1940)
कुरूक्षेत्र (1946)
धूप-छाँह (1947)
सामधेनी (1947)
बापू (1947)
इतिहास के आँसू (1951)
धूप और धुआँ (1951)
मिर्च का मजा (1951)
रश्मिरथी (1952)
दिल्ली (1954)
नीम के पत्ते (1954)
  नील कुसुम (1955)
  सूरज का ब्याह (1955)
  चक्रवाल (1956)
  कवि-श्री (1957)
  सीपी और शंख (1957)
  नये सुभाषित (1957)
  लोकप्रिय कवि दिनकर (1960)
  उर्वशी (1961)
  परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
  आत्मा की आँखें (1964)
  कोयला और कवित्व (1964)
  मृत्ति-तिलक (1964)
  दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
  हारे को हरिनाम (1970)
  संचियता (1973)
  दिनकर के गीत (1973)
  रश्मिलोक (1974)
  उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)

गद्य कृतियां

मिट्टी की ओर (1946)
चित्तौड़ का साका (1948)
अर्धनारीश्वर (1952)
रेती के फूल (1954)
हमारी सांस्कृतिक एकता (1955)
भारत की सांस्कृतिक कहानी (1955)
संस्कृति के चार अध्याय (1956)
उजली आग (1956)
देश-विदेश (1957)
राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता (1955)
काव्य की भूमिका (1958)
पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण (1958)
वेणुवन (1958)
वट-पीपल (1961)
लोकदेव नेहरू (1965)
शुद्ध कविता की खोज (1966)
साहित्य-मुखी (1968)
राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी (1968)
हे राम! (1968)
धर्म, नैतिकता और विज्ञान (1969)
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1970)
भारतीय एकता  (1971)
मेरी यात्राएँ (1971)
दिनकर की डायरी (1973)
चेतना की शिला (1973)
विवाह की मुसीबतें (1973)
आधुनिक बोध (1973)


पुरस्कार और सम्मान


दिनकर जी काव्य 'कुरुक्षेत्र' के भारत सरकार ने पुरस्कार दिया था।

सन् 1959 में  ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए दिनकर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।

सन् 1959 में भारत के पहले राष्ट्रपति रहे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पद्म विभूषण पुरस्कार दिनकर जी को सम्मानित किया और भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा एलएलडी की डिग्री से नवाजा गया था।

सन् 1968 में, राजस्थान विद्यापीठ ने दिनकर जी को साहित्य-चूड़ामन पुरस्कार से सम्मानित किया था।

सन् 1972 में, दिनकर जी के कविता उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सन् 1999 में, भारत सरकार ने रामधारी सिंह दिनकर के स्मृति में एक डाक टिकट जारी हुआ। उस सेट पर उनका चित्रित किया गया था

बिहार में , बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके जयंती पर उनका मुर्ति का अनावरण किया।

मृत्यु

भारत के महान राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर सौम्य, मृदुभाषी और बेबाक बातचीत करने वाला इंसान थे। उनका देहांत 24 अप्रैल 1974 तमिलनाडु के शहर चेन्नई में 65 वर्ष के उम्र हुआ।

ऐसे महापुरुष युगों-युगों में एक बार आते हैं। इनकी रचना आज भी लोगों में जोश भरता है और आने वाले समय भी क्रांतिकारी जोश भरेगा।


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